नौ अक्टूबर की रात है शरद पूर्णिमा की रात
श्रीकृष्ण ने रचाया था महारास
जब समूची प्रकृति व देवता बने गोपी
रात मे बेमौसम के फूल खिले महं महं धरती महकी
भगवान श्रीकृष्ण ने आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को ही महारास रचाया था। जब वंशी की धुन सुन कर गोपियां बेसुध हो यमुना तट पर पहुंच गईं। जिनमे कुछ के श्रृंगार अधूरे थे,कुछ के पूरे। जिन्हें परिवार के लोगों ने रोक दिया वे वहीं भाव समाधि मे चली गईं। श्रीकृष्ण ने योगमाया से कहा सबका अधूरा श्रृंगार पूरा करो। फिर सजी धजी गोपियां पहुंची। वंशी वादन के साथ महारास शुरु हुआ। यह क्या हर गोपी के साथ एक एक कृष्ण आगए। महारास शुरु हुआ तो देवता भी गोपी रूप मे आपहुंचे। फिर तो अद्भुत दृश्य हुआ। पुष्प जो रात मे नहीं खिलते थे,सब खिल उठे। प्रकृति सुगंध से भर गई।
यमुना के भीतर चंद्र की परछाई सजने लगी। नृत्य और संगीत का समां बंध गया। नृत्य गहराता गया… भाव समाधि लगती गई। किसी को अपने तन वदन का होश न रहा। अचानक राधा को मान हुआ.. थकान महसूस हुआ कृष्ण ने कहा पीठ पर बैठ जाओ.. राधारानी घुटनों के बल झुके कृष्ण पर, ज्यों आरुढ़ होना चाहीं… श्रीकृष्ण अंतर्धांन होगए। अब तो कृष्ण के वियोग मे गोपियां रोने लगी। हिचकियां लेने लगीं। राधा बारंबार वेहोश हो जातीं.. यह देख श्रीकृष्ण फिर प्रगट हुए। संयोग और वियोग की दोनो दशायें प्रेम का परिपाक कराने लगीं। कामदेव आया था दृश्य देखने.. उसकी माया नहीं चली।
गोपियां तो श्रीकृष्ण को पहले ही मन दे चुकी थीं। मन्मथ को किसी का मन मिला ही नहीं। निराश होकर भाग खड़ा हुआ। यह विशुद्ध प्रेम की लीला थी। यहां भला वासना का प्रवेश कैसे संभव था? गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति विशुद्ध प्रेम उन्हें ब्रह्मानंद मे पहुंचा चुका था। परम योगेश्वर श्रीकृष्ण की इस लीला मे कितना समय बीत गया,पता ही नहीं चला। रात बहुत बड़ी हुई जिसमे समूची प्रकृति रस सागर मे गोते लगाने लगी। चंद्रमा की किरणें रात भर अमृत वर्षा कराती रहीं।
शरद पूनो की रात खीर और त्राटक की रात
शरद पूर्णिमा को चंद्रमा से अमृत झरता है,इसीलिए लोग खीर बना कर रात मे खुले आसमान के नीचे रख कर जाली से ढक देते हैं। ताकि चंद्रमा की शीतल किरणें उसमे पड़ें। सुबह उस खीर का सेवन करते हैं। एकादशी से पूर्णिमा तक योग साधक चंद्रमा पर त्राटक दस मिनट नित्य लगाते हैं,जिससे नेत्र की ज्योति बढ़ती है। त्राटक का मतलब बिना पलक झपकाये चंद्र को एकटक देखना।