दो टूक : अब विपक्ष भाजपा से लड़ने नहीं अपने को बचाने की करे कोशिश

राजेश श्रीवास्तव

दो दिनों से एक चर्चा बहुत तेज चल रही है कि यूपी की प्रमुख विपक्षी समाजवादी पार्टी दो फाड़ होने जा रही है। सिर्फ पल्लवी पटेल और स्वामी प्रसाद मौर्य ही नहीं बल्कि करीब दस विधायक उसके जल्द ही कमल खिलाने को आतुर है। उधर कांग्रेस से कमलनाथ भी कमल से मिलन को उतावले है। आदर्श घोटाले के मुख्य आरोपी अशोक चव्हाण अब भाज्पा में आकर खुद को पाक साफ साबित कर चुके हैं। इन सब चर्चाओं को आप जब सुनते हैं तो लगता नहीं कि भाजपा का 400 पार का नारा खोखला है, क्योंंकि विपक्ष जिस तरह अपने ही सहयोगियों के कपड़े जिस तरह फाड़ रहा है, चह इस जुुमले को और ताकत दे रहा है। जिस समाजवादी पार्टी की उत्तर प्रदेश में हैसियत पांच सीट जीतने की नहीं है उसने अपने दंभ के चलते ही रालोद और सुभासपा को पहले ही भाजपा को गोद में बिठा दिया। अब कांग्रेस भी चुनाव आते-आते सपा की साइकिल से उतर जायेगी, यह बिल्कुल साफ हो गया है क्योंकि अखिलेश के 11 सीटों के आफर को वह कतई स्वीकार नहीं करेगी।

सपा में जिस तरह से भगदड़ मची है उससे लगता कि साइकिल चालकों को पता है कि साइकिल पर चढ़ कर वह सदन तक नहीं पहुंच पायेंगे तो क्यों न कमल थाम लिया जाये। सपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। राज्यसभा चुनाव के प्रत्याशियों के एलान के बाद सपा के कई नेताओं ने खुला तो कुछ ने मौन विरोध करना शुरू कर दिया है। राज्यसभा चुनाव के मतदान से पहले सपा में बगावत की सुगबुगाहट नजर आने लगी है। सपा विधायक इंद्रजीत सरोज समेत 4-5 विधायकों के भाजपा में संपर्क की चर्चाएं हैं। सपा विधायक पल्लवी पटेल खुला एलान कर चुकी हैं कि वह सपा के राज्यसभा प्रत्याशियों को वोट नहीं देंगी, क्योंकि इन्हें तय करने में पीडीए का ख्याल नहीं रखा गया। वहीं, महासचिव पद से इस्तीफा देने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य के खासमखास व तिदवारी से पूर्व विधायक बृजेश प्रजापति ने भी मोर्चा खोल दिया है। उनका दावा है कि पीडीए समर्थक सपा के विधायक राज्यसभा प्रत्याशी आलोक रंजन और जया बच्चन को वोट नहीं देंगे। उन्होंने इस मुद्दे पर पार्टी विधायकों में फूट का भी दावा किया है। उन्होंने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ बोले जाने वाले शब्दों पर सपा नेतृत्व अंकुश नहीं लगा पा रहा है।

बीते दिनों विपक्षी दलों ने इंडिया नामक गठबंधन बना कर नारा दिया था कि जीतेगा इंडिया। विपक्षी दलों ने केंद्र की सत्ता से मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का दम भरते हुए कहा था कि हम पूरे देश में हर सीट पर भाजपा के खिलाफ एक उम्मीदवार उतारेंगे ताकि भाजपा को हराया जा सके। विपक्षी दलों ने दावा किया था कि हम सीट बंटवारे के समय बड़ा दिल दिखाएंगे। लेकिन यह सब दावे तब हवा हवाई हो गये जब यह गठबंधन ही भरभरा कर गिर गया। पहले तो इस गठबंधन की नींव रखने वाले नीतीश कुमार ही पलटी मार कर वापस एनडीए के पाले में चले गये। फिर राष्ट्रीय लोक दल ने भी एनडीए का दामन थाम लिया। तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी इस गठबंधन से किनारा कर लिया। आम आदमी पार्टी ने तो अपने उम्मीदवार भी घोषित करने शुरू कर दिये।

अब जम्मू-कश्मीर की प्रमुख पार्टी नेशनल कांफ्रेंस ने भी ऐलान कर दिया है कि वह लोकसभा और विधानसभा चुनाव बिना किसी गठबंधन के अपने बलबूते लड़ेगी। हम आपको बता दें कि विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट होने के प्रयास तो भरसक किये लेकिन आपसी विश्वास की कमी से यह गठजोड़ हमेशा बिखरता चला गया। याद कीजिये जब राष्ट्रपति चुनाव की बात आई थी तब भी विपक्ष एकजुट हुआ था लेकिन ऐन मौके पर सारे बड़े नेता चुनाव लड़ने से पीछे हट गये थे और यशवंत सिन्हा को आगे कर दिया था। ऐसा ही हाल उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी देखने को मिला था जब विपक्षी एकजुटता ऐन चुनाव से पहले बिखर गयी और कोई सशक्त उम्मीदवार देने की बजाय पूर्व राज्यपाल मारग्रेट अल्वा को मैदान में उतार दिया गया था। यही हाल कमोवेश अब लोकसभा चुनावों से पहले भी देखने को मिल रहा है। प्रधानमंत्री पद के अलावा गठबंधन के संयोजक के पद के लिए भी इतने दावेदार थे कि बात बन ही नहीं पाई। यह गठबंधन सिर्फ नाम और नारा तय करने के बाद ही बिखर गया। देखा जाये तो यह भारतीय राजनीति में सबसे विफल प्रयोग था क्योंकि इससे पहले बनने वाले गठबंधनों ने कुछ महीनों और सालों तक की जिदगी जी लेकिन इंडिया गठबंधन तो मात्र तीन बैठकों के बाद ही टांय टांय फिस्स हो गया।

विपक्षी गठबंधन इंडिया की एक प्रमुख पार्टी राकांपा भी टूट चुकी है और इसका बड़ा भाग एनडीए के खाते में जबकि छोटा टुकड़ा विपक्ष के पास बचा है। इसके अलावा चुनाव सिर पर होने के बावजूद राहुल गांधी को दिल्ली में सीट बंटवारे पर चर्चा करने की बजाय दूसरे प्रदेशों में घूमते देख फारुक अब्दुल्ला का माथा भी ठनक गया है और उन्होंने भी इस गठबंधन से किनारा कर लिया है। देखना होगा कि इस गठजोड़ में बचे खुचे दल भी चुनाव घोषणा तक साथ रहते हैं या जल्द ही किनारा करते हुए कांग्रेस को अकेला छोड़ देते हैं। फिलहाल तो इस गठबंधन के बचे हुए घटक दल एक दूसरे से ‘तू चल मैं आया’ कहते दिख रहे हैं। यही नहीं, हाल के दिनों में कांग्रेस के ही कई बड़े नेता पार्टी से किनारा कर चुके हैं और कई नेता किनारा करने की तैयारी में हैं। इससे इंडिया गठबंधन के बचे हुए घटक दलों में यह भी संदेश जा रहा है कि जो पार्टी खुद एकजुट नहीं है वह विपक्षी दलों को कैसे एकजुट रख पायेगी? मतलब साफ है कि आगामी 2024 के चुनाव में अपने 400 पार के आंकड़े को आसानी से छू लेेगी।

Bundelkhand Central UP homeslider Purvanchal Raj Dharm UP Uttar Pradesh

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