नेपाल में संवैधानिक संकट गहराया,सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को भेजी नोटिस

उमेश तिवारी

काठमांडू/नेपाल। नेपाल में संवैधानिक संस्थाओं के बीच टकराव पैदा होने की सूरत बन रही है। इससे देश में संवैधानिक लोकतंत्र के भविष्य को लेकर नई आशंकाएं पैदा हो गई हैं। मौजूदा संकट के लिए राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को जिम्मेदार माना जा रहा है, जिन्होंने संसद से दो पारित नागरिकता संशोधन विधेयक पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है, लेकिन इससे ये सवाल भी खड़ा हुआ है कि अगर राष्ट्रपति ने इस नोटिस को नजरंदाज किया, तो फिर घटनाएं क्या मोड़ लेंगी। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश हरि फुयाल ने राष्ट्रपति कार्यालय से यह बताने को कहा है कि राष्ट्रपति भंडारी ने विधेयक पर क्यों दस्तखत नहीं किया और सुप्रीम कोर्ट को ऐसा करने के लिए उन्हें निर्देश क्यों नहीं जारी करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह नोटिस अलग-अलग दायर की गईं पांच याचिकाओं पर शुरुआती सुनवाई करते हुए जारी किया। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि राष्ट्रपति भंडारी ने बिल पर दस्तखत करने से इनकार करके नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 113 (4) का उल्लंघन किया है। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह राष्ट्रपति को अपनी गलती सुधारने के लिए निर्देश जारी करे।

नेपाली संविधान के अनुच्छेद 113 (4) के तहत नेपाल के राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वे संसद से पारित विधेयक को अपनी टिप्पणियों के साथ एक बार दोबारा विचार के लिए लौटा सकती हैं। लेकिन अगर संसद ने उसी विधेयक को दोबारा पारित कर दिया, तो उसके बाद विधेयक प्राप्त होने के 15 दिन के अंदर उस पर दस्तखत करने के लिए राष्ट्रपति बाध्य हैं। नागरिकता संशोधन विधेयक को उन्होंने एक बार अपनी आपत्तियां दर्ज कराते हुए लौटा दिया था। मगर संसद ने बिल को उसके मूल रूप में दोबारा पारित कर दिया। उसके बाद उस पर दस्तखत करने की समय सीमा 20 सितंबर थी, जिसे राष्ट्रपति ने बिना हस्ताक्षर किए गुजर जाने दिया। अब नेपाल में दशहरा की छुट्टियां हो गई हैं। इसलिए राष्ट्रपति कार्यालय अब 9 अक्तूबर को खुलेगा। तब तक वहां से कोर्ट को कोई जवाब मिलने की संभावना नहीं है।

याचिकाकर्ताओं में से एक अधिवक्ता सुनील रंजन सिंह ने अखबार काठमांडू पोस्ट को बताया कि अब अगली सुनवाई एक महीने बाद ही होगी। राष्ट्रपति कार्यालय का जवाब मिलने के बाद सुनवाई के लिए खंडपीठ का गठन किया जाएगा। उसके बाद खंडपीठ यह फैसला करेगी कि इन याचिकाओं को सुनवाई के लिए संविधान पीठ के पास भेजने की जरूरत है या नहीं। विधि विशेषज्ञों ने राय जताई है कि सुप्रीम कोर्ट मामले को संविधान पीठ को भेज सकता है, क्योंकि इसमें राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र संबधित संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या की जरूरत पड़ेगी। अगर सुप्रीम कोर्ट संविधान पीठ गठित करने का फैसला करता है, तो उसकी अध्यक्षता अनिवार्य रूप से चीफ जस्टिस करेंगे। याचिकाकर्ता सिंह ने कहा- हमें उम्मीद है कि कोर्ट इस मामले में ऐसी मिसाल कायम करेगा, जिससे इस तरह की घटना भविष्य में ना दोहराई जा सके।

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