शिक्षक दिवस पर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती का दिन आज है, जानने के लिए पूरी खबर जरूर पढ़ें

  • शिक्षको की गरिमा बनाये रखें
  • सरकारें नियुक्ति और पेंशन पर ध्यान दें
  • रिक्तस्थानो पर यथाशीघ्र नियुक्तियां करें
  • प्राईवेट विद्यालय व महाविद्यालयों के फीस की सीमा तय हो
  • शिक्षकों को मानदेय नहीं नियमित वेतन दे
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

पूर्व राष्ट्रपति स्व सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती का दिन पांच सितंबर है, जिस दिन शिक्षक दिवस मनाया जाता है। आईये शिक्षकों की स्थिति और परिस्थिति पर एक बार विचार करें। समाज मे शिक्षक एक सम्मानित पद माना जाता है,बच्चे जिसे आदर्श मानते रहे हैं। प्रयाग के सेंट्रलपेडागॉजिकल इंस्टीट्यूट मे हम लोग शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे ,तो हमें बताया गया आप आदर्श हैं, आपको घर मे हो या बाहर सदा शिक्षक गरिमा को बनाये रखना चाहिए। न तो किसी साईकिल की डंडी पर बैठ कर चलिये और न सड़क के किनारे झुग्गी झोपड़ी मे चाय पिये या चाट वाले के पास सड़क पर रेवड़ी वाले के पास खड़े हो। माता पिता के बाद बच्चे का आदर्श शिक्षक ही होता है । कोई ऐसा काम सार्वजनिक स्थल पर करते न नजर आएं जो मर्यादा के प्रतिकूल हो। वाणी और व्यवहार मे सदा संयम बरतें। स्कूल में भी हमेशा पूर्णवस्त्र मे शेविंग करके साफ सुथरे होकर जाएं।

मेरे घर मे आजादी के पूर्व सरकारी स्कूल में दो बड़े पिताजी शिक्षक थे। मेरे पिता  ,चाचा  भी शिक्षक थे हम दोनो भाई शिक्षक रहे। दो बेटे भी शिक्षक हैं। मेरे पिताजी कहते थे हमलोगो का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ, हमारी पहली प्राथमिकता शिक्षणकार्य ही है। इससे काम न चले तो मिलिट्री मे जाना चाहिए। उसमे काम न बने तब व्यापार मे घुसना चाहिए। यही सोच हम लोगों की रही। परंतु शिक्षक बनना अब आसान नहीं रहा। आयोग की शिथिलता से नियुक्ति मे बरसों लग रहे हैं। एडेड विद्यालयों मे प्राईवेट स्कूल के प्रबंधक अब नियुक्ति कर नहीं सकते। भ्रष्टाचार इतना अधिक बढ़ चुका है कि निमित नियुक्तियों में लाखों की डिमांड होरही, जो शिक्षा जगत के लिए कलंक है । केंद्र सरकार द्वारा पेंशन सुविधा 2004 मे बंद कर देने से शिक्षक रिटायरमेंट के बाद निराश्रित और असहाय हो चुका है।

दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति तो यह है कि शिक्षकों की वैकल्पिक नियुक्तियां,विषय विशेषज्ञ,पूल टीचर आदि के रूप मे जो नियुक्तियों का प्रचलन चलाया गया उससे‌ शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई। कहना न होगा कि बीसवीं सदी के अंतिम दशक से शुरु हुई इस व्यवस्था ने शिक्षक को चौराहे का भिक्षुक बना कर रख दिया। समान कार्य के लिए असमान वेतन का यह संक्रामक रोग प्राईमरी, इंटरमीडिएट कालेज से लेकर यहाविद्यालय और विश्वविद्यालय तक फैल गया। रिक्त स्थान होते हुए भी नियुक्तियों मे सरकारे आना कानी करने लगीं। जो नियुक्तियां शुरू भी हुई वह कोर्ट मे किसी न किसी बहाने लेजाकर फंसा दी गई। नियुक्त शिक्षक भी त्रिशंकु बन गए। वर्तमान समय मे केंद्र या प्रदेश सरकारो को शिक्षा के बारे मे सोचने की फुरसत ही नहीं रह गई है। जिससे शिक्षक दिवस मनाने की औपचारिकता मात्र बरती जारही है। जब कि निरंतर शुचिचा बरतते हुए नियमित नियुक्तियां और शिक्षा की गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा गरीबो से लेकर अमीरो तक सबके लिए उपलब्ध होनी चाहिए।

शिक्षा व्यवस्था मे क्षरण की शुरुआत…

शिक्षको को वेतन सरकार को न देना पड़े,जब कि आबादी बढ़ने लगी ऐसे मे सरकारो ने प्राईवेट विद्यालय खोलने और मनमानी फीस लेने की खुली छूट देदी। परिणाम स्वरुप एडेड और सरकारी स्कूलों के अपेक्षा लगभग तीन-चार गुने अधिक स्कूल खुल गए और मनमानी फीस वसूली का धंधा शुरू हुआ। इसमे शिक्षक भी औने पौने मानदेय पर रखे जाने लगे। यह मानदेय इन शिक्षको के परिवार को पेट भरने लायक पेसे मी नहीं दे पारहे हैं। स्किल्ड लेबर से भी कम होने से इनके बच्चो की शिक्षा और स्वास्थ्य की देख भाल केसे होगी?? यह बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खडा़ हो गया। शिक्षक दिवस पर महान शिक्षा विद डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को नमन करते हुए आने वाले जन प्रतिनिधियों से अनुरोध करता हूं कि वे शिक्षा,शिक्षक और शिक्षार्थी की समस्याओ पर गंभीरता पू्र्वक विचार कर भविष्य की रणनीति तय करें।

डॉ एस राधाकृष्णन…(संक्षिप्त जीवन परिचय)

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम में, जो मद्रास ,अब चेन्नई से लगभग 64 कि॰ मी॰ की दूरी पर स्थित है, 5 सितंबर 1888 को हुआ था। यह एक ब्राह्मण परिवार से संबंधित थे। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पुरखे पहले ‘सर्वपल्ली’ नामक ग्राम में रहते थे और 18वीं शताब्दी के मध्य में उन्होंने तिरूतनी ग्राम मे चले गए डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक ग़रीब किन्तु विद्वान ब्राह्मण की दूसरी संतान के रूप में पैदा हुए। इनके पिता का नाम ‘सर्वपल्ली वीरास्वामी’ और माता का नाम ‘सीताम्मा’ था। इनके पिता राजस्व विभाग में वैकल्पिक कार्यालय में काम करते थे। इन पर बड़े परिवार के भरण-पोषण का दायित्व था। इनके पाँच पुत्र तथा एक पुत्री थी। राधाकृष्णन का स्थान इन संततियों में दूसरा था। इनके पिता काफ़ी कठिनाई के साथ परिवार का निर्वहन कर रहे थे। इस कारण बालक राधाकृष्णन को बचपन में कोई विशेष सुख नहीं प्राप्त हुआ। वर्ष 1888मे इनका जन्म और मृत्यु वर्ष 17अप्रैल1975 चेन्नई मे हुआ। इन्होने 40वर्षों तक शिक्षण कार्य किया। ये आजाद भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति (1952-62) और दूसरे (1962-1967) राष्ट्रपति रहे।

Analysis

फसल अवशेष जलाना मतलब किसी बड़े संकट को दावत देना

पर्यावरण के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी छीन लेती है पराली अगर वैज्ञानिक तरीके से मिट्टी को संवारेंगे तो बढ़ सकता है किसानों का लाभ गर्मी से मर जाते हैं सूक्ष्म जीवाणु, जिससे कम हो जाती है जमीन की उर्वरा शक्ति मधुकर त्रिपाठी कुछ दिनों पहले मैं देवरिया जिले से सटे भलुअनी की तरफ […]

Read More
Analysis

नार्वे के दो शिक्षा मंत्री द्वारा गुनाह, साहित्य चोरी के लिए हटाये गए !!

के विक्रम राव संपन्न उत्तरी यूरोप राष्ट्र नार्वे, एक विकसित राजतंत्र की गत दिनों बड़ी वैश्विक फजीहत हुई। सरकार की दो मंत्री श्रीमती सांद्रा बोर्स जो रिसर्च और उच्च शिक्षा विभाग संभालती हैं, तथा स्वास्थ्य मंत्री श्रीमती इंगविल्ड क्जेर्कोल को बेशर्मी से पदत्याग करना पड़ा। दोनों पर आरोप था कि उन्होंने अपनी थीसिस के लिए […]

Read More
Analysis

कच्छतिवु पर मोदी के तीव्र तेवर ! तमिल वोटर भी प्रभावित !!

  संसदीय निर्वाचन के दौरान सूनसान दक्षिणी द्वीप कच्छ्तिवु भी सुनामी की भांति खबरों में उमड़ पड़ा है। आखिरी बैलेट पर्चा मतपेटी में गिरा कि यह विवाद भी तिरोभूत हो जाता है। चार-पांच सालों के लिए। क्या है यह भैंसासुररूपी रक्तबीज दानव जैसा विवाद ? अठारहवीं लोकसभा निर्वाचन में यह मात्र दो वर्ग किलोमीटर वाला […]

Read More