धर्मांतरण के बाद किस हाल में हैं ईसाई और मुसलमान बनने वाले दलित, सरकार जुटा रही जानकारी

रंजन कुमार सिंह

सुप्रीम कोर्ट में धर्मांतरण करने वालों को भी आरक्षण का लाभ देने की मांग करने वाली याचिकाओं के बरक्स सरकार यह जानने के लिए एक पैनल बना रही है कि धर्म परिवर्तन के बाद ईसाई और मुसलमान बनने वाले दलित किस हाल में हैं. इस्लाम या ईसाई में धर्मांतरण करने वाले अनुसूचित जाति के लोगों या दलितों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति क्या है? इसकी जानकारी हासिल करने के लिए केंद्र सरकार नेशनल कमीशन का गठन करने जा रही है। यह कमीशन उन अनुसूचित जाति या दलितों के हालत की स्टडी करेगा जिन्होंने हिंदू, बौद्ध और सिख के अलावा अन्य धर्मों में धर्मांतरण किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, इस तरह के अध्ययन को लेकर कमीशन गठित करने के प्रस्ताव पर विचार जारी है। बताया जा रहा है कि बहुत जल्द ही इस पर अंतिम फैसला हो सकता है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के सूत्रों ने कहा कि उन्होंने इस तरह के कदम के लिए हरी झंडी दे दी है। फिलहाल, इस प्रस्ताव पर गृह, कानून, सामाजिक न्याय और अधिकारिता व वित्त मंत्रालयों के बीच विचार-विमर्श चल रहा है।

धर्मांतरण करने वालों को आरक्षण का लाभ देने की मांग

सुप्रीम कोर्ट में ऐसी कई याचिकाएं लंबित हैं जिनमें ईसाई या इस्लाम में धर्मांतरण करने वाले दलितों को आरक्षण का लाभ देने की मांग की गई है। इसे देखते हुए ऐसे मामलों में कमीशन गठित करने का सुझाव और भी अहम हो जाता है। संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950, अनुच्छेद 341 के तहत यह निर्धारित किया गया कि हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग धर्म को मानने वाले किसी भी व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है। हालांकि, केवल हिंदुओं को SC बताने वाले इस मूल आदेश में 1956 में सिखों और 1990 में बौद्धों को शामिल करने के लिए संशोधन किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने 30 अगस्त को केंद्र सरकार को उन याचिकाओं पर रुख स्पष्ट करने के लिए तीन हफ्ते का समय दिया, जिसमें ईसाई और इस्लाम धर्म अपना चुके दलितों को अनुसूचित जाति आरक्षण का लाभ देने का मुद्दा उठाने वाली याचिकाएं शामिल हैं। SC में दायर जनहित याचिका में धर्मांतरण करने वाले दलितों के लिए उसी तरह आरक्षण की मांग की गई है, जैसे हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म के अनुसूचित जातियों को आरक्षण मिलता है।

आरक्षण देने की मांग पर SC में 11 अक्टूबर को सुनवाई

जस्टिस एस. के. कौल की अध्यक्षता वाली पीठ को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि इस मुद्दे के प्रभाव हैं और वह सरकार के मौजूदा रुख को रिकॉर्ड में रखेंगे। बेंच इस मामले पर अब 11 अक्टूबर को सुनवाई करेगी। याचिका में कहा गया कि धर्म में परिवर्तन से सामाजिक बहिष्कार नहीं बदलता है। ईसाई धर्म के भीतर भी यह कायम है, भले ही धर्म में इसकी मनाही है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, प्रस्तावित आयोग में तीन या चार सदस्य हो सकते हैं, जिसके अध्यक्ष के पास केंद्रीय कैबिनेट मंत्री का पद हो सकता है। कमीशन को अपनी रिपोर्ट पेश करने के लिए एक साल का समय दिया जा सकता है। यह कमीशन ईसाई या इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों की स्थिति और उसमें बदलाव का अध्ययन करेगा। साथ ही मौजूदा SC सूची में अधिक सदस्यों को जोड़ने के प्रभाव का भी पता लगाया जाएगा।

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