वैशाख शुक्ल पूर्णिमा : बुद्धावतार -करुणामय देव का अवतरण

  • ढाई हजार साल पूर्व कपिलवस्तु के राजघराने मे जन्म
  • नौगढ़ के धान के बेल्ट मे राजा थे शुद्धोदन
  • दुनिया को करुणा का पाठ पढ़ाने वाले महापुरुष हैं बुद्ध
  • कुशीनगर मे हुआ बुद्ध का महापरिनिर्वाण

बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

“नहिं वेरेण वैराणि उपसम्मंति कदाचन।
अवैरेण च सम्मंति एष धम्मो सनातनो।।’-धम्मपद

वैर से वैर कभी समाप्त नहीं होता। निर्वेरता से वैर समाप्त होता है। यही सनातन धर्म भी है।- गौतम बुद्ध लुंबिनी कानन जाने का अवसर मुझे सन 1965मे मिला। तब मैनें कक्षा 11की परीक्षा दी थी। धम्मपद घर मे था,उसका पाठ अर्थ सहित किया तो विचार अच्छे लगे। मै एक दिन अकेला ही ट्रेन से शोहरत गढ़ निकल गया,वहां से टैक्सी से लुंबिनी कानन पहुंचा। दिन मे तीसरे प्रसर पहुंचा त़ो अशोक का लाट देखा और वह स्थल देखा जहां सिद्धार्थ का जन्म हुआ था। मुझे इसके पूर्व गीताप्रेस की पुस्तकों से पता चला था कपिल बस्तु से ननिहाल जाते समय जिस वन मे मां को प्रसव पीड़ा हुई वहीं प्रसूतिका को उतार कर कपड़े का घेरा बना दिया गया- वह स्थल लुंबिनी कानन था। तब बुद्ध को अवतार मानते हुए मेरी उनके प्रति श्रद्धा भी बढ़ी थी।

मुझे उनकी करुणा के किस्से बहुत भाते रहे। ऐतिहासिक ग्रंथो के अनुसार करीब ढाई हजार वर्ष हुए बुद्ध को अवतरित हुए। ज्योतिषियों ने ग्रह नक्षत्र देख कर बताया था कि यह बालक या त़ो चक्रवर्ती सम्राट होगा या परम योगी। माता पिता ने बालक को वैराग्य न हो इसके लिए सारे इंतजाम कर दिये थे। राज कुमार के सामने,रोगी वृद्ध आतुर,साधु- संत नहीं जासकते थे। राज महल में सारे सुख के सामान थे और तन्वंगियां उनकी सेवा मे लगी रहती थीं। राजा रानी इन्हें चक्रवर्ती सम्राट ही बनाना चाहते थे। पर होनी को कौन बदल सकता है? सिद्धार्थ चक्रवर्ती सम्राट के बजाय चक्रवर्ती योगी गौतम बुद्ध बने और करुणावतार बुद्ध के रूप मे उन्होंने हिंसा के बजाय करणा, प्रेम ,संयम का पाठ सारी दुनिया को पढ़ा दिया। वर्तमान युग मे बौद्धावतार की चर्घा है, सनातनी तो हर दिन संकल्प मे यह दुहराते है। मुझे 1969मे़ राजगीर और 1982 में कुशीनगर 2013मे़ बोधगया जाने का सौभाग्य मिला। बुद्ध का महापरिनिर्वाण कुशीनगर मे हुआ। आज करोड़ो अनुयायियों मे भारत के मगध के राजा बिंबसार ,अशोक आदि इनके अनुयायी थे।

महाभिनिष्क्रमण-सारनाथ को प्रस्थान

सिद्धार्थ जब युवा हुए तो छंदक सारथी को लेकर एक दिन युवराज निकल पड़े राज पथ पर, जब उन्होंने बीमार ,अपाहिज,वृद्ध अशक्त भिखारी और पहली बार शवयात्रा देखी। युवराज प्रश्न पूछते गए और मंत्री को जवाब देना पड़ा।तब उन्हे हर प्राणी की नश्वरता का बोध हुआ। यह हर इंसान के जीवन मे घटित होता है युवराज। सबको बीमार,वृद्ध और मृत्यु के कष्ट झेलने पड़ते हैं। शरीर की अवस्थायें हैं बालक,युवा,प्रौढ़,वृद्ध और अंत मे मृत्यु के पश्चात शरीर का अंतिम संस्कार..पंचतत्व मे‌विलीन होजाना। यहीं से युवा हृदय मे प्रश्न उठे- रोगों से मुक्ति कैसे? कष्ट का निवारण किस तरह ?मृत्यु के जीतने का उपाय क्या? बुद्ध ने अपनी पत्नी यशोधरा और सोये अपने पुत्र आनंद को त्याग गृहत्याग का निर्णय‌ लिया। वैराग्य चरमावस्था मे थी भोगो से मन उचाट होगया और आधी रात को अस्तबल से तेज घोड़ा लेकर उस पर सवार हो सिद्धार्थ अमरत्व की खोज मे चल पड़े काशी की तरफ। छंदक सारथी ने लख लिया और उनके पीछे लग गया। अचिरावती (राप्ती)नदी पार करने के बाद सिद्धार्थ रुके नहीं। आमी नाला पार किया सिर के बाल मुड़ाये राजसी वस्त्र का परित्याग किया। छंदक को संदेश देकर पिता के पास वापस भेजा और यात्रा पुन: जारी की। अंत मे शाम होते सार नाथ पहुंचे और एक वृक्ष के नीचे आसन जमा कर ध्यान मे डूब गए।

कई दिन व्यतीत हुए बिना खाये पिये ,अंतत: एक

दिन ध्यान मे डूबे सिद्धार्थ को आत्मबोध हुआ। अंत: करण प्रकाश से भर गया। दिव्य अनुभूतियों ने चित्त को परमानंद की चरमावस्था में पहुंचा दिया। बोध होने के बाद मे ये बुद्ध कहलाये। कुछ विद्धानो के अनुसार बिहार के गया जिले मे बोधगया मे एक ब्राह्मण के घर इनका जन्म हुआ। पर इसके आगे क्या घटना घटी इसका उल्लेख नहीं मिलता। सत्य अहिंसा करुणा दयालुता और सबके प्रति एक ही आत्मभाव‌ ने इन्हें अमृतस्वरूप बना। दिया। अब मृत्यु का भय समाप्त होचुका था। सभी जीव़ों के प्रति समानता और करूणा की भावना हिलोरे ले रही थी। जगह जगह रुकते लोक कल्याण करते बुद्ध अनंत यात्रा पर निकल गए। इनके अनुमायी बढ़ते गए चेतना का जागरण कराते पंचशील का उपदेश देते बुद्ध ने सामाजिक क्रांति ला दी। जिसके प्रभाव मे हिंसक भी करुणावान होने लगे राजाओं ने मारकाट पर विराम लगा दिए और सर्वजन समानता की आंधी चल पड़ी। सम्राट अशोक और उनकी बहन संघमित्रा भी इनके शिष्य बने और बुद्धधर्म का प्रचार प्रसार तेजी से चतुर्दिक फैलने लगा। बुद्ध धर्म का प्रसार भारत के अलावा श्रीलंका, भारत के विविध प्रांत तिब्बत, नेफा,लद्दाख और जापान,चीन,वर्मा आदि देशों तक फैला हुआ है।

महाभिनिष्क्रमण का साक्षी संतकबीरनगर

कालांतर मे बस्ती जनपद के दो तहसील महाभिनिष्क्रमण मार्ग के साक्षी बने,जो बाद मे सिद्धार्थनगर और संतकबीर नगर जनपद कहलाये। अचिरावती नदी( राप्ती),बांसी के निकट,धर्मसिंहवा,कोपिया,बालूशासन,उतरावल,महाथान,कटवन्ह, कुदवा नाला,तामेश्वरनाथ,धनघटा होते हुए काशी जाने के मार्ग के ये गांव खुदाई से मिली सामग्रियों से बुद्ध का महाभिनिष्क्रमण मार्ग सिद्ध करते है। जहां ढाई हजार पूर्व की टेराकोटा की मूर्तियां,मातृमूर्तिया,धर्म चक्र,चौदहवीं शती के कनिष्क कालीन सिक्के व तमाम पुराने मृणमय पात्र व सामान पुरातात्विक उत्खनन मे मिले हैं।

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