जमीन अच्छी हो व खाद अच्छी हो,
पर पानी खारा हो, तो फूल नहीं खिलते,
वैसे ही भाव अच्छे हों, कर्म भी अच्छे हों,
पर वाणी खराब हो, तो रिश्ते नहीं टिकते।
इंसान के विचारों का स्तर इंसान की
अपनी संगति पर ही निर्भर करता है,
हमारी संगति जितनी अच्छी होगी,
हम उतने ही विचारों के धनी होंगे।
संगति से ज्ञान मिलता और
ज्ञान से शब्द समझ आते हैं
संगति से अनुभव भी मिलता है,
अनुभव से अर्थ समझ आते हैं।
इंसान की पसंद अद्भुत होती है जो
उसके विचारों पर निर्भर करती है,
पसंद करे तो बुराई नहीं देखता,
नफ़रत करे तो अच्छा नहीं देखता।
पसंद और नफ़रत मस्तिष्क में पलते हैं,
एक के ख़ज़ाने में प्रेम, ख़ुशियाँ और
मधुर यादें, और दूसरे में घृणा, द्वेष
ईर्ष्या व क्रोध के कचरे सँजोए होते हैं।
मधुर वचन सदा सच नहीं होते हैं,
सत्य वचन हमेशा मधुर नहीं होते हैं,
परंतु वचनों से क्या फ़र्क़ पड़ता है,
आदित्य क़र्म हमेशा सच ही कहते हैं।