सूक्ष्मता से समझें SEX: काम कला से जीवन जीने की इच्छा होती है प्रबल

इसीलिए मरना तय जानकर भी आखिर क्यों जीने की भरसक कोशिश करता है मनुष्य

जन्म और म़ृत्यु के बीच गुजरने वाला हमारा सारा जीवन भी ‘सेक्समय’


बृजगोपाल राय ‘चंचल’


यक्ष ने युधिष्ठिर  से पूछा- संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? जिजीविषा- युधिष्ठिïर ने कहा-अर्थात जीने की उत्कट इच्छा। जबकि संसार में प्रत्येक मनुष्य यह जानता है कि उसकी भी एक दिन मृत्यु होगी और मृत्यु के बाद सब कुछ निरर्थक हो जाएगा। उसके जीने की यह इच्छा जिजीविषा ही संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य हे। उत्तर संतुष्ट  होकर यक्ष ने युधिष्ठिïर को अपने तालाब से पानी पीने दिया, किन्तु यह प्रश्न तो अनुत्तरित ही रह गया कि ‘जिजीविषा क्या है? और यह क्यों हैं? सदियों तक मनीषी इस ‘क्यों का उत्तर खोजते रहे। किन्तु खोज की दिशा-‘मृत्यु पर विजय यानी ‘अमरत्व की रही। और यह आज तक जारी है। अखबारों में यदा-कदा पढऩे को मिल जाता है कि विज्ञान ने मनुष्य की दीर्घायुता का रहस्य खोज लिया है। यह कि 100 वर्ष बाद, मनुष्य की आयु 200 वर्ष तक हो सकेगी। लेकिन ‘मृत्यु से बचना असंभव है। लेकिन 20वीं सदी के महान वैज्ञानिक सर सिगमंड फ्रायड ने इस ‘जिजीविषा का कारण ‘काम वासना बताकर तहलका मचा दिया था।

यद्यपि फ्रायड की कई स्थापनाएं आज ‘अमान्य हो गयी हैं, किन्तु ‘जिजीविषा का एक मात्र कारण ‘काम वासना वाली स्थापना आज तक अटल है। फ्रायड की यह दलील कि सिर्फ मनुष्य ही नहीं, समस्त प्राणी-जगत, कीड़े-मकोड़े से लेकर पेड़-पौधों तक में नर-मादा वाली यौनिकता (सेक्स) है और ‘एक से अनेक होने वाली उसकी भावना, अर्थात ‘प्रजनन प्रकृति का ‘स्वभाव है। जिन्होंने बॉटनी पढ़ी है, वे जानते होंगे कि फूल का खिलना ‘प्रजनन ही एक प्रक्रिया है। और फूल का मुरझाकर ‘मृत्यु को प्राप्त हो जाना अगर एक ‘सत्य है, तो मृत्यु से पूर्व ‘बीज रूप में हो जाना भी उसका एक ‘सत्य है, ताकि वह दोबारा ‘जीवित हो। शायद इसी लिए, श्रीकृष्ण ने गीता में ‘आत्मा की अमरता का संदेश दिया था। यह ‘आत्मा ही तो ‘जिजीविषाÓ है, जिसे फ्रायड ने वैज्ञानिक शब्दावली में ‘काम वासना कहा है। गीता में श्रीकृष्ण ने भी स्वयं को (अर्थात परमात्मा को)’काम कहा है।

ऊपर काम वासना अर्थात सेक्स की यह दार्शनिक भूमिका मुझे इसलिए बतानी पड़ी, ताकि लोग, पाठक इस विषय को गंदा, अश्लील, पाप, बुरी बात या गंदी बात समझने की भावना से ऊपर उठें और आगे, इस लेख की धारावाहिक चलने वाली प्रश्नोत्तरी की श्रृंखला को अपने ज्ञान, तर्क और बुद्घि की कसौटी पर कसते हुए ‘सेक्स को सहज भाव से लें।ऊपर हमने बात ‘मृत्यु से शुरु की है। लेकिन मृत्यु क्या है? मृत्यु कुछ नहीं है, सिवाय ‘पुनर्जन्म के। हम सभी का जन्म ‘सेक्स से हुआ है। जब जन्म सेक्स से हुआ है, तो जाहिर है, मृत्यु भी सेक्स की ही एक ‘स्थिति अथवा ‘घटना मात्र है। दूसरे शब्दों में कहें तो जन्म हो या म़ृत्यु-सब कुछ ‘सेक्समय है। और जन्म और म़ृत्यु के बीच गुजरने वाला हमारा सारा जीवन भी ‘सेक्समय है। इस ‘सेक्युलिटी को थोड़ा ठीक से समझना पड़ेगा।

एक चित्रकार ने सुंदर चित्र बनाया, या एक गीतकार ने मधुर गीत लिखा या गाया, किसी ने सुंदर मूर्ति बनाई, संगीत रचा, लेख लिखा, उपन्यास की रचना की। पत्रिका का संपादन किया, यहां तक कि लजीज भोजन बनाया- यह सब ‘सेक्युलिएटी है। मनुष्य अपनी ‘कामवासना की अभिव्यक्ति सिर्फ बेडरूम में अपने पार्टनर के साथ या अकेले में बाथरुम में हस्तमैथुन के जरिये ही नहीं करता। वह सेक्सुएलिटी का एक बेहद ‘स्थूल या कि कहिए ‘नासमझ अभिव्यक्ति है। हमारे देश में खजुराहो तथा उड़ीसा में मंदिरों की बाहरी दीवारों पर जो मिथुन-मूर्तियां बनाई गई वे इसीलिए बनाई गईं कि मनुष्य सेक्युलिएटी के इसी ‘स्थूल रूप को थोड़ा और खूबसूरत और कलात्मक बना सके। इक्कीस सौ साल पहले महर्षि वात्स्यायन ने ‘काम सूत्र की रचना भी इसलिए की, ताकि सेक्स के इस ‘स्थूल रूप को ‘मानवीय बनाया जा सके।

वरना सेक्स तो पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े ही रह गये।ध्यान में रहे, हमारी पृथ्वी पर, हमारे जीवन में, श्रेष्ठ, सुंदर और जो भी प्रशंसनीय है- वह उन महान लोगों की वजह से है, जिन्होंने अपनी काम ऊर्जा को ऐसे ‘सकारात्मक कार्यों में लगाया और खपाया। साथ ही साथ, जो भी गंदा, बदसूरत, घिनौना और तिरस्कृत है-वह भी उन लोगों की वजह से ही है, जिन्होंने अपनी काम ऊर्जा को ‘नकारात्मक कार्यों में लगाया। संसार में जितने भी विनाशकारी युद्घ हुए हैं, वे सभी इसी नकारात्मक काम ऊर्जा से ग्रस्त, लोगों द्वारा किये, कराये गये हैं। ‘हिंसा मानवीय जीवन का सबसे नकारात्मक पहलू है। और हिंसक व्यक्ति का मतलब ही है-एक विकृत-यौन-कुंठित व्यक्ति। चंगेज खान, सिकंदर, हिटलर, मुसोलिनी,- ये चंद उदाहरण हैं। इनके जीवन में ‘प्रेम नामक तत्व का अभाव रहा है। और ‘प्रेम क्या है? काम वासना की श्रेष्ठïतम अभिव्यक्ति? फ्रायड ने इसीलिए अपने ग्रंथों में मानव मन की तमाम गुत्थियों की बेहतरीन वैज्ञानिक व्याख्या की है। उन्होंने चिंता, स्वप्न, कल्पना, घृणा, दया, करुणा, ईष्र्या, भय, पाप, नैतिकता, अनैतिकता, मर्यादा, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे तत्वों की वैज्ञानिक व्याख्या की है और जबर्दस्त तरीके से प्रमाणित किया है कि ये सभी ‘सेक्स की वजह से ही प्रकट होते है। मनुष्य का जन्म जिस परिवेश और परिस्थिति में होता है, वैसे ही उसकी ‘सेक्सुएलिटी का भी विकास होता है और तदनुरूप ही वह ‘आचरण करता है। फ्रायड ने इसके लिए ‘बचपन में घटी घटनाओं पर बहुत जोर दिया है। बचपन की सारी स्मृतियां मनुष्य के अवचेतन मन में ‘फीड हो जाती हैं और हमेशा रहती हैं, भले ही हम उन्हें ‘भूल जाएं।

संतूर वादक पद्मविभूषण पं शिवकुमार शर्मा

दरअसल ‘भूलना जेसा कुछ नहीं होता। प्रत्येक मनुष्य का दिमाग (अपवाद छोड़कर) इतना शक्तिशाली होता है कि वह खरबों ‘सूचनाओं को अपनी ‘स्मृति में ‘स्टोर कर सकता है। स्मृति के भंडार में से जब हम कुछ आवश्यक ‘खोजना चाहते हैं और उसमें ‘देर लगती है तो हम उसे ‘भूलना कहते हैं। जिन्हें हम खोजते ही नहीं या उसे अनावश्यक समझते हैं, वह स्मृति की परतों में नीचे दब जाती है। लेकिन वे रहती हैं। नष्टï नहीं होती। मजे की बात यह है कि ‘इच्छाएं भी कभी नष्टï नहीं होतीं। हम या तो उनका ‘दमन करते हैं, और मौका मिलते ही तत्काल कब्र से बाहर निकल आती हैं। ये ‘इच्छाएं भी अवचेतन में ‘फीड रहती है। इसके लिए फ्रायड का दिलचस्प उदाहरण ‘मां का स्तन  है। जन्म के तत्काल बाद बच्चे का पहला ‘परिचय मां के स्तन से होता है, जो डेढ़-दो वर्षों तक रहता है। स्तन से उसे ‘भोजन मिलता है और भोजन की ‘संतुष्टिï` और ‘तृप्ति उसकी ‘स्मृति में फीड हो जाती है। जिस चीज से हमें सुख और आनंद, तृप्ति या संतुष्टिï मिलती है- वह हमारी ‘स्मृति में फीड हो जाती है। हम उस ‘आनंद को बार-बार ‘ पाना` खहते हैं। इसीलिए बच्चा बार-बार ‘दूध पीना चाहता है। उसे मां के स्तनों से इतना ‘प्यार  हो जाता है कि वह  उसे छोडऩा नहीं चाहता। पुरुष बड़ा हो जाने के बाद भी, ‘स्तन से पीछा नहीं ‘छुड़ा पाता। उसे स्त्री के स्तन हमेशा आकर्षक लगते हैं।

फ्रायड ने बच्चे के स्तन पान को ‘यौन-सुख माना है, जो उसके अविकसित मस्तिष्क में ‘फीड रहता है। ठीक इसी तरह यौनांगों को छूने, मसलने, रगड़ऩे या गुदगुदाने से होने वाली उत्तेजना, अथवा बाद में ‘स्खलन से मिलने वाली पहली आनंदानुभूति भी उसके दिमाग में ‘फीड हो जाती है। इसी आनंद की अनुभूति को बार-बार पाने की कोशिश, उसमें सफलता, असफलता, दमन, उद्दीपन, शमन या अत्यधिक शमन में ही व्यक्ति का पूरा जीवन, मृत्यु तक- बीत जाता है। सामाजिक संरचना, पारिवारिक जीवन और शिक्षा-ये भी उसके क्रियाकलापों को ‘नियंत्रित जरूर करते हैं, लेकिन उसकी ‘निजी दुनिया तो इसी अवचेतन मन में स्टोर इच्छाओं से ही परिचालित होती है। यही कारण है कि जिसे नेता बनना होता है, वह नेता(सफल या असफल) बनता है और जिसे फकीर बनना होता है, वह फकीर बन जाता है।

अवचेतन में मौजूद ‘इच्छा जितनी बलवती होती है, उसका प्रकटीकरण उतना ही विस्फोटक होता है। इसीलिए कुछ बलात्कारी बन जाते हैं, तो कुछ संन्यासी। कुछ चोर बन जाते हैं, तो कुछ नेता। कुछ हत्यारे तो कुछ समाजसेवी। कुछ संगीतकार तो कुछ पत्रकार। मन अर्थात सेक्युएलिटी की इस तिलस्मी दुनिया की बाकी परतों से हम आगे भी रुबरू कराते रहेंगे। हां, आधुनिक- विज्ञान ने चूंकि ‘जीन्स और ‘आनुवांशिकता तथा हार्मोन्स आदि पर भी तमाम शोध किये हैं, इसलिए फ्रायड के सारे निष्कर्षों को आज यथारुप नहीं माना जाता। लेकिन उनके सिद्घांत आज भी अटल हैं।

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