सेवा ने ही 800 लोगों को विदेशों से रेस्क्यु किया-राजेश मणि निदेशक मानव सेवा संस्थान गोरखपुर
उमेश तिवारी
नौतनवा/महराजगंज। मानव तस्करी एक बड़े संगठित अपराध के रूप में उभरकर सामने आया है। हथियारों व ड्रग्स की तस्करी के बाद यह तीसरे नंबर का सबसे बड़ा संगठित अपराध माना जा रहा है। 11 जनवरी को राष्ट्रीय मानव तस्करी जागरूकता दिवस मनाया जाता है। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो भारत-नेपाल की सीमाएं मानव तस्करी को लेकर हमेशा चर्चा में रही हैं। महराजगंज के सोनौली और ठूठीबारी बॉर्डर के साथ ही सीमाई गांवों में मानव तस्करी को लेकर जागरूकता अभियान भी चलते रहते हैं। लेकिन इसके बाद भी मानव तस्करी के मामले सामने आते ही रहते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता व सीमा पर मानव तस्करी पर काम करने वाले मानव सेवा संस्थान सेवा के निदेशक राजेश मणि बताते हैं कि एक आंकड़े के मुताबिक दो दशक में करीब दस हजार लोगों को भारत-नेपाल सीमा पर मानव तस्करी का शिकार होने से बचाया गया है। बताते हैं कि मानव तस्करी में अंगों को निकालना, डांस पार्टी में बेच देना, बंधक के रूप में काम कराना, बाल श्रम, शोषण, वेश्यावृत्ति में धकेल देना, रोजगार का झांसा देकर खरीद-फरोख्त के मामले सामने आते हैं। अक्सर नेपाली युवतियों को भारत के बड़े शहरों या खाड़ी देशों में बहला-फुसलाकर ले जाने की कोशिश होती है। क्रास बॉर्डर ट्रैफिकिंग के साथ साथ अंतर्राज्यीय ट्रैफिकिंग भी जोरों पर है।
सेवा ने ही 800 लोगों को विदेशों से रेस्क्यू किया
मानव सेवा संस्थान सेवा के निदेशक राजेश मणि बताते हैं कि संस्था भारत-नेपाल सीमा पर दो दशक से कार्य कर रही है। सीमा पर मानव तस्करी रोकने के साथ ही संस्था ने लगभग 800 लोगों को विदेशों से रेस्क्यू किया है, जो वहां अलग-अलग देशों में फंस जाते हैं।
बॉर्डर के 80 गांवों में चलता है जागरूकता अभियान
पुलिस व एसएसबी के सहयोग से सेवा सहित पीजीएसएस व प्लान इंडिया सीमा पर जागरूकता अभियान चलाते हैं। महराजगंज के सोनौली व ठूठीबारी के साथ अन्य जिलों के सीमाई कस्बों को मिलाकर अभियान चलाया जाता है। बॉर्डर के 80 गांवों को इसके मद्देनजर चिह्नित किया गया है।