दो टूक : सियासी दल के बदलाव से क्या जनता भी बदलाव को है तैयार

राजेश श्रीवास्तव

क्या देश में बदलाव की बयार बह रही है वह भी सियासी दलों में। तीन राज्यों में जीत के बाद जब भारतीय जनता पार्टी ने अपने रचे-बसे नेताऔं के चेहरों को दरकिनार कर बेहद कम अनुभवी नये नेताओं को नुमाइंदगी सौंपी तभी से इस बात की चर्चा तेज हो गयी थी। इस बात को और अधिक बल मिला शनिवार को जब कांग्रेस भी भाजपा की राह पर चल पड़ी और उसने जिन नेताओं को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताया था । माना जा रहा था कि पार्टी उन्हीें नेताओं को संगठन की जिम्मेदारी सौंपेगी। लेकिन कांग्रेस ने भी बड़ा बदलाव कर दिखाया। पार्टी ने कमलनाथ की जगह जीतू पटवारी को मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया है। वहीं सदन में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका अब आदिवासी नेता और विधायक उमंग सिघार संभालेंगे। उधर छत्तीसगढ़ में दिग्गज नेता और सक्ती विधायक डॉ. चरणदास महंत को सीएलपी लीडर यानी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है।

इसके अलावा दीपक बैज को एक बार फिर से छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। यानी उन्हें कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के पद पर बरकरार रखा गया है। भाजपा ने भी मालवा के उज्जैन से मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया है। उसके जवाब में कांग्रेस ने भी मालवा से ही युवा नेता जीतू पटवारी को कमान सौंपी। वहीं उमंग सिघार के जरिए आदिवासियों को साधा है। वहीं, हेमंत कटारे ब्राह्मण वर्ग से आते हैं। कांग्रेस ने बड़ा जोखिम उठाकर यह बदलाव किया है।

हालांकि भाजपा में यह कोई नई बात नहीं है। जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, तब पहला चुनाव महाराष्ट्र और हरियाणा में हुआ। उस वक्त देवेंद्र फडणवीस कहां चर्चा में थे? मनोहर लाल खट्टर कहां चर्चा में थे? इसके बाद योगी आदित्यनाथ, रामनाथ कोविद, द्रोपदी मुर्मू जैसे कई नाम इस सूची में हैं। लोग भले कहें कि भाजपा 2०24 की तैयारी कर रही है। लेकिन उसकी तैयारी की समीक्षा करेंगे तो पायेंगे कि जिस तरह वह नये और युवा नेतृत्व को खड़ा कर रही है, वह 24 साल बाद यानी 2०47 की तैयारी में जुटी है। यह एक लॉन्ग मार्च है। इसमें कई चेहरे जुड़ेंगे और कई चले जाएंगे। एक तरफ यह राजनीतिक दूरदर्शिता का मामला है। दूसरी तरफ यह कॉर्पोरेट एलिजिबिलिटी का भी मामला है। मुझे लगता है कि भाजपा ने एक साहसपूर्ण कदम उठाया है। पार्टी ने जो नए चेहरों को सामने लाने का काम किया है, उससे उसके कार्यकर्ताओं को नई ऊर्ज़ा मिलेगी।

इससे कांग्रेस ने सबक लिया और भले ही उसकी सरकार जहां नहीं बन पायी वहां उसने नए पीढ़ी को आगे आने का मौका दिया। किसी भी पार्टी को आगे ले जाने के लिए सिर्फ एक नाम काफी नहीं होता है। उसके लिए कई चेहरों को जरूरत होती है। यह फैसला लॉन्गटर्म विजन है। लेकिन कांग्रेस को बहुत सोच-समझकर जोखिम लेना होगा। उसे भी अशोक गहलोत और भूपेश बघ्ोल से छुट्टी पानी होगी क्योंकि छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तो नारा लगता था कि बघ्ोल मतलब कांग्रेस और कांग्रेस मतलब गहलोत। यानि पार्टी व्यक्ति पर निर्भर हो गयी थी शायद इसका परिणाम भी कांग्रेस को भुगतना पड़ा। जहां तक नरेंद्र मोदी की बात है तो 2०24 में वह प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार हैं। भाजपा का एक ठोस वोटबैंक बन चुका है। भाजपा में उनके नाम पर वोट मिलता है वहां चेहरा और वोट बैंक वही सब कुछ हैं। 198० में जब भाजपा बनी, तब से लेकर अब तक हिदुत्व भाजपा के कोर में रहा है।

उससे भाजपा कभी नहीं हटी है चाहे वह सत्ता में रही हो या नहीं रही हो। 2०14 के बाद भाजपा के संगठन में काफी बदलाव आया है। इसके साथ ही सरकार के स्तर पर भी प्रधानमंत्री ने कई प्रयोग किए हैं। कई बार ऐसा भी हुआ जब पार्टी को लगा कि प्रयोग सही नहीं रहा तो उसे बदलने में भी पार्टी ने समय नहीं लगाया। उत्तराखंड हो या गुजरात हो या फिर गोवा हो, ऐसे कई उदाहरण हैं। पार्टी ने बीते समय में कई साहसिक निर्णय लिए हैं। इस बार के फैसलों ने बताया कि अगर आप लंबे समय से एक पद पर हैं तो वहीं नहीं बने रहेंगे। आपको संगठन में भी जाना होगा। प्रधानमंत्री मोदी जानते हैं कि भाजपा को अगर अगले 15-2० या 25 साल तक सत्ता में देखना है तो नए नेतृत्व को सामने लाना होगा। यह उसी दिशा में लिया गया निर्णय है।

इसी सोच को कांग्रेस को भी अमल में लाना ही होगा। वैसे अंदरखाने बताया जा रहा है कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और कांग्रेस आलाकमान में लंबे समय से पटरी नहीं बैठ पा रही थी। इसी का नतीजा रहा कि पार्टी को विधानसभा चुनाव में मुंह की खानी पड़ी। कमलनाथ और दिल्ली में तालमेल न होने की झलक कई बार पार्टी फैसलों में भी साफ दिखाई देती थी। ऐसे में पार्टी ने अब फाइनली कमलनाथ के हाथ से प्रदेश की कमान लेते हुए युवा चेहरे जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सौंपी दी है। हालांकि, जीतू पटवारी खुद इस बार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं कर पाए, वह राऊ विधानसभा से अपना चुनाव हार गए थे। फिलहाल दोनों दलों ने नयी इबारत लिखनी शुरू कर दी है, देखना होगा कि 2०24 मंे जनता बदलाव करेगी या नहीं।

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