
- सत्य से धर्म की रक्षा होती है
- सत्य ही है साक्षात नारायण
- अधर्म से बचाने में सत्य और तप है समर्थ
- नैमिष तीर्थ से मिलता है संदेश

सत्यनारायण व्रत कथा की शुरुआत नैमिष तीर्थ से है। जहां कश्यप अदिति ने प्रभु को पुत्र के रूप मे पाने के लिए तप किया था। ललिता माता का क्षैत्र है अत: सृजन का उत्सव भूमि कह सकते है। प्रत्येक शुभ कार्य की प्रतिष्ठा वास्तव मे सत्य की प्रतिष्ठा से हैं। “हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्य पिहितम् मुखा:” असत्य के हिरण्मय पात्र मे सत्य छिपा है। बाहर से संसार कदली के स्तंभ की तरह है। छिलके मे छिलका.. यही स़सार का कटु यथार्थ है। मंगल का उदय सत्यनारायण व्रत कथा से होता है। जब हम यह सुनते हैं तो मंगल कार्यों के शुभारंभ की अवधि समीप आरही है ऐसा प्रतीत होता है।
अट्ठासी हजार ऋषि मुनियो ने कहा -कलियुग में पाप बढ़ेगा फिर तप कहां करें? ब्रह्मा ने कहा यह चक्र जारहा है पीछे पीछे जाओ.. जहां यह धरती मे समा जायेगा वह पावन भूमि होगी। वहां तप करना । शौनकादिक अट्ठासी हजार ऋषि चक्र के पीछे चल पड़े। नैमिष तीर्थ मे आकर चक्र धरती मे धंस गया। चक्रतीर्थ कहलाया। बगल मे ललिता माता की सिद्ध स्थली है। शौनकादि ऋषि गण वहीं रुक गए। वही सूत जी ने सत्य को ही नारायण बताते हुए सत्यनारायण व्रत कथा पहली बार सुनाई। पता चला यही गोमती के पावन तट पर कश्यप और अदिति पूर्व काल मे दस हजारवर्षों तक तप कर चुके हैं। यही महर्षि वेदव्यास जी भी बहुत काल तक रहे। वेद पुराणों का लेखन किया। चक्र तीर्थ मे लोग स्नान करते हैं।
इसीलिए नैमिषारण्य मे सत्यनारायण व्रत कथा सुनने का विधान है। कश्यप ने एक संतान मांगी थी। किंतु जब वे दशरथ के रूप मे अयोध्या के महाराजा बने तो तीन रानियों से चार संताने मिली। इसीलिए यहां कहते है। एक मांगोगे चार पाओगे। चाऱो पुरुषार्थ नैमिष तीर्थ की यात्रा से सध जाते हैं। लखनऊ से सीतापुर जाते समय बीच से रास्ता नैमिषारण्य की तरफ मुड़ जाता है। कैसरबाग से रोडवेज बस मिलती रही है। पहली बार मैने गोंडा से सीतापुर और सीतापुर से नैमिष तीर्थ की यात्रा की थी।