शब्द व व्यवहार ही मनुष्य
की असली पहचान होते हैं,
चेहरा व ऐश्वर्य तो आज हैं,
शायद कल नहीं रह पाते हैं।
तकलीफ़ें और मुसीबतें ईश्वर निर्मित
प्रयोगशालाओं में तैयार की जाती हैं,
मनुष्य का आत्मविश्वास और उसकी
योग्यता भी वहाँ ही परखी जाती है ।
चिंता करना व फ़िक्र करना दोनो
अलग अलग अभिप्राय रखते हैं,
चिंतित को समस्या दिखाई देती हैं,
फ़िक्र मंद समस्या हल कर लेते हैं।
समस्या जब परिवार,
समाज पर आती है,
तो जिन्हें फ़िक्र होती है
वे उसे हल कर लेते हैं,
जो चिंता में डूबे रहते हैं,
वे उसमें ही उलझे रहते हैं।
पत्ते व डाली तभी तक हरे रहते हैं
जब तक पेंड़ पौधों से जुड़े होते हैं,
इंसान भी तभी तक ख़ुश रहता है,
जब तक परिवार से जुड़ा रहता है।
पत्ते व डालियाँ सूखते हैं पेंड़ पौधे
उनको खाद पानी नहीं दे पाते हैं,
परिवार से अलग होने वाले इंसान
आदित्य अपने संस्कार खो देते हैं।