लखनऊ जेल अधीक्षक ने किया था घटना से इनकार
अस्पताल ने बकाया भुगतान नहीं होने से बॉडी देने से किया मना
लखनऊ। राजधानी की जिला जेल में बंदीरक्षक पर हुए जानलेवा हमले की घटना से अधीक्षक ने इनकार किया था। हमले में घायल बंदीरक्षक की मौत होने ने जेल अधिकारियों को बोलती बंद हो गई है। बंदीरक्षक के उपचार में हुए खर्च का भुगतान नहीं होने पर अस्पताल प्रशासन ने बॉडी देने से इनकार कर दिया। इससे बंदीरक्षक संवर्ग के कर्मियों में खासा आक्रोश व्याप्त है। बीती 11 जनवरी को लखनऊ जेल में सुबह जेल खुलवाने के समय बैरेक खुलते ही कुछ बंदियों ने बंदीरक्षक कृष्ण कुमार पांडेय पर हमला बोल दिया। बंदियों ने ईंट पत्थर से हमला कर बंदीरक्षक को लहूलुहान कर दिया। पिटाई से बंदीरक्षक का सिर फट गया। गंभीर रूप से घायल बंदीरक्षक को जेल में प्राथमिक उपचार देने के बाद राजधानी के मेदांता हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। इस घटना के संबंध में जब लखनऊ जेल के वरिष्ठ अधीक्षक आशीष तिवारी से गोसाईंगंज संवाददाता ने घटना के संबंध में बात की तो उन्होंने ऐसी किसी घटना को सिरे से ही नकारते हुए कहा था ऐसी कोई घटना जेल में हुई ही नहीं।
घटना के बाद मेदांता अस्पताल में 18 दिनों तक जिंदगी मौत से जूझ रहे बंदीरक्षक कृष्ण कुमार पांडेय की रविवार को मौत हो गई। सूत्रों का कहना है कि बंदीरक्षक के उपचार में करीब दो लाख रुपए खर्च हुए। इस धनराशि का भुगतान नहीं होने की वजह से अस्पताल प्रशासन ने मृतक बंदीरक्षक की बॉडी देने से यह कहकर इनकार कर दिया की भुगतान होने के बाद ही बॉडी परिजनों के सुपुर्द की जाएगी। बताया गया है कि बंदीरक्षक के सेना में तैनात भाई ने धनराशि को जमा कर बंदीरक्षक की बॉडी को लिया। इसके बाद वह जेल परिसर में स्थित बंदीरक्षक के आवास पहुंचे। जहां पर जेल के बंदीरक्षकों से सहायता के लिए एकत्र की गई धनराशि को अधीक्षक ने मृतक बंदीरक्षक की पत्नी को दिया। उधर इस संबंध में लखनऊ परिक्षेत्र के डीआईजी जेल एके सिंह ने आरोपों को सिरे से नकारते हुए बताया कि मृतक बंदीरक्षकों के परिजनों की पूरी तरह से मदद की गई है।
घटनाएं छिपाने में माहिर जेल प्रशासन
लखनऊ जेल प्रशासन को घटनाएं छिपाने में महारत हासिल है। मामला चाहे गल्ला गोदाम से बरामद 35 लाख नगर बरामदगी को हो या फिर ढाका से बंगलादेशी बंदियों की फडिंग का, या फिर विदेशी बंदी की गलत रिहाई को हो या फिर बंदियों की पिटाई का मामला हो हर घटना को छिपा लिया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि प्रकरणों की जांच करने वाले परिक्षेत्र के जेल डीआईजी को भी इन घटनाओं के लिए कोई दोषी नहीं मिलता है। बंदीरक्षक पर हुए हमले को भी अधीक्षक ने सिरे से ही नकार दिया था।