कविता : परम शत्रु भी मित्र बन जाते हैं,

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र,

बड़े बड़े महलों को ढहते देखा है,
उन महलों में रहने वालों को देखा है,
भूखे प्यासे दर दर भटकते देखा है,
उनकी संतान अनाथ होते देखा है।

सुखदुःखदो न चान्योऽस्ति
यतः स्वकृतभुक्पुमान् ॥

कोई दूसरा किसी को सुख
दुःख देने वाला नहीं होता है,
प्रत्येक मनुष्य अपने किए हुए
कर्म का फल स्वयं भोगता है।

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बाक़ी सब सांसारिक माया मोह है
सत्य तो केवल वह परमात्मा ही है
उसे चाहे साकार मानो या निराकार,
सबसे सच्चा मित्र तो वही होता है।

समस्या का समाधान वास्तव में,
मित्र के साथ, मित्र के पास होता है,
रिश्ता न खून का है, न रिवाज का है,
पर ये रिश्ता आजीवन साथ देता है।

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परमात्मा का क़हर जब टूटता है,
सांसारिक मित्र भी शत्रु हो जाते हैं,
आदित्य जब उसकी कृपा बरसती है,
तब परम शत्रु भी मित्र बन जाते है।

 

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