नेपाल में सरकार बदलते ही चीन ने खोला खजाना

चीनी कर्ज के मूलधन और ब्याज तले दब सकता है नेपाल


उमेश तिवारी


काठमांडू। नेपाल दो शक्तिशाली पड़ोसियों के बीच स्थित है। ऐसे में इस पहाड़ी देश को अपने अस्तित्व के लिए दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाने की आवश्यक्ता है। 26 दिसंबर 2022 को नेपाल के प्रधानमंत्री बनने के बाद पुष्प कमल दहल ने कहा था कि वह भारत के साथ संबंधों को मजबूत बनाने के लिए पुराने विवादों को भूल सकते हैं। उन्होंने यहां तक कहा था कि दोनों देशों के बीच सभी गलतफहमियों को बातचीत के जरिए दूर किया जाएगा और इसके लिए वह किसी अन्य देश से पहले भारत का दौरा कर सकते हैं। हालांकि, उनके कार्यकाल के पहले सात दिनों से संकेत मिलता है। कि नेपाल भारत के साथ संबंधों की कीमत पर चीन का करीबी बनता जा रहा है। काठमांडू-केरुंग रेलवे, हवाई अड्डे और भी बहुत कुछ चीन की सहायता से नेपाल में बनाए जा रहे हैं। इसका असर भारत-नेपाल संबंधों पर पड़ सकता है।

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प्रचंड के PM बनते ही रेलवे प्रोजक्ट ने पकड़ी रफ्तार

ओआरएफ की रिपोर्ट के अनुसार, प्रचंड के नेपाल के प्रधानमंत्री बनने के कुछ घंटों के भीतर, काठमांडू-केरुंग रेलवे परियोजना के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार करने के लिए चीनी तकनीकी टीम 27 दिसंबर को काठमांडू पहुंची। काठमांडू-केरुंग रेलवे को लेकर मुख्य चिंता यह है कि क्या इसमें नेपाल और चीन के हितों को पूरा करने की क्षमता है। केरुंग तिब्बत में स्थित एक छोटा शहर है। इसे ग्यारोंग टाउन के नाम से भी जाना जाता है। केरूंग चीन की राजधानी बीजिंग या सबसे बड़े औद्योगिक शहर शंघाई से हजारों किलोमीटर दूर है। ऐसे में बहुत से लोग इस रेललाइन के जरिए एक देश से दूसरे देश यात्रा नहीं करेंगे। व्यापार के क्षेत्र में नेपाल ने 2020 में चीन से 233.92 बिलियन रुपये का सामान आयात किया था, जबकि नेपाल ने चीन को सिर्फ एक बिलियन रुपये का माल निर्यात किया था।

रेल लाइन का बजट नेपाल के JDP का एक चौथाई

अनुमान है कि काठमांडू-केरुंग रेलवे लाइन पर देश की लागत आठ बिलियन अमेरिकी डॉलर होगी। यह बजट नेपाल के कुल सकल घरेलू उत्पाद (JDP) का एक चौथाई से अधिक है। नेपाल जैसे कम आय वाले देश के लिए इस परियोजना के लिए ब्याज और मूल राशि चुकाना संभव नहीं होगा। साथ ही इस प्रस्तावित रेल लाइन को हिमालय के सबसे दुर्गम इलाके से होकर गुजरना होगा जिसके लिए कई पुल और सुरंगें बनानी होंगी। सर्दियों में, हिमालय में हमेशा भारी हिमपात होता है। जो ट्रैक साफ नहीं होने पर रेल सेवाओं को बाधित कर सकता है। अगर यह किया भी जाता है। तो यह एक महंगा प्रोजक्ट साबित होगा। इस परियोजना का पर्यावरणीय प्रभाव एक और चुनौती है। परियोजना के निर्माण में शामिल भारी लागत को देखते हुए नेपाल में शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाली नेपाली कांग्रेस सरकार ने 2021 में चीन को संदेश दिया कि अगर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत अनुदान मिलता है। तो उन्हें काठमांडू-केरुंग रेलवे जैसी परियोजना को स्वीकार करने में कोई समस्या नहीं होगी। ऐसे में सवाल है कि क्या चीन इस रेलवे लाइन के लिए नेपाल को अनुदान में दे पाएगा?

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चीन ने प्रचंड के PM बनते ही खोली तीन साल से बंद सीमा चौकी

प्रचंड के प्रधानमंत्री बनने के तीसरे ही दिन 28 दिसंबर 2022 को चीन ने रसुवागडी (नेपाल)-केरुंग (चीन) सीमा खोल दी। यह सीमा कोरोना महामारी की शुरुआत में जनवरी 2020 से बंद पड़ी थी। माना जा रहा है कि यह प्रधानमंत्री प्रचंड के स्वागत का प्रतीक था। लेकिन, अभी तक यह पता नहीं चल सका है कि चीन तातोपानी सीमा को क्यों नहीं खोल सका। यह सीमा 2015 से बंद पड़ा है, जब नेपाल भूकंप के सबसे ज्यादा प्रभावित था। इसी तरह, नेपाल और तिब्बत के बीच अन्य क्रॉसिंग पॉइंट नहीं खोले गए हैं, हालांकि दोनों देशों के सीमावर्ती निवासियों को इसके कारण भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। सातवें दिन, एक जनवरी 2023 को, प्रधानमंत्री प्रचंड ने एक भव्य समारोह में पश्चिमी नेपाल में पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन किया। इस हवाई अड्डे का निर्माण मार्च 2016 में चीन एक्जिम बैंक से मिले कर्ज के जरिए किया गया था। यह चीन का तीसरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। चीन में भैरहवा में गौतम बुद्ध अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और काठमांडू में त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी मौजूद है।

चीन की मदद से नेपाल में बना पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा

दुर्भाग्य से, नेपाल के पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे के परिचालन में आने की कोई उम्मीद नहीं है। यह हवाई अड्डा अभी तक किसी विदेशी एयरलाइन को आरर्षिट करने में नाकाम रहा है। चूंकि, यह चीनी कर्ज के साथ बनाया गया है, ऐसे में यह संभावना नहीं है कि भारत इस उद्देश्य के लिए किसी भी विदेशी एयरलाइनों को अपने हवाई क्षेत्र की अनुमति देगा। भारत की स्पष्ट नीति है कि वह नेपाल में चीनी सहायता से निर्मित किसी भी परियोजना पर विचार नहीं करेगा। ऐसे में पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का किराया भैरहवा में गौतम बुद्ध अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से भी बदतर होगा। भैरहवा हवाई अड्डे पर 2022 में संचालन शुरू होने के बाद से सिर्फ कुवैत की जजीरा एयरवेज ही अंतरराष्ट्रीय उड़ान चलाने को तैयार हुई थी। बाद में उसने भी इस एयरपोर्ट पर अपनी सर्विस को बंद कर दिया।

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नेपाल को BRI के जरिए कर्ज से पाटने की तैयारी में चीन

एक जनवरी को पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के उद्घाटन के बाद ही यह विवादों में घिर गया। चीनी दूतावास ने उद्घाटन के एक दिन पहले ट्वीट कर दावा किया कि इसे BRI प्रोजक्ट के हिस्से के तौर पर बनाया गया है। ऐसे में पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा चीन-नेपाल BRI सहयोग की एक प्रमुख परियोजना है। हालांकि, नेपाल ने चीनी दूतावास के इस दावे का खंडन किया। नेपाल सरकार ने कहा कि इसे BRI की कल्पना से कई साल पहले डिजाइन किया गया था। विस्तृत इंजीनियरिंग कार्य और पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के मास्टर प्लान के अलावा हवाईअड्डा साइट का चयन 1971 तक जर्मन कंसल्टिंग इंजीनियरिंग फर्म DEWI द्वारा तैयार किया गया था। 1988 में JICA ने इसकी समीक्षा की गई थी। बाद में, नागरिक उड्डयन विभाग 1993 में एक विस्तृत इंजीनियरिंग सर्वेक्षण किया।

दो हवाई अड्डों को फ्लाइट नहीं मिल रही और तीसरा बनाने को तैयार प्रचंड

पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन करते हुए, प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ने एक और विवाद खड़ा कर दिया। उन्होंने उद्घाटन के दौरान एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार किसी भी कीमत पर निजगढ़ में एक नए अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण करेगी। जब हाल ही में निर्मित गौतम बुद्ध अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा का भविष्य अनिश्चित है, तो निजगढ़ में एक साथ चौथा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने का क्या मतलब है? इस संबंध में, नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही सरकार को निजगढ़ में एक नए अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के निर्माण के फैसले को रद्द करने का आदेश दिया है। कोर्ट का तर्क है कि 3.5 अरब डॉलर के इस प्रोजक्ट के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को न करते इसकी पारिस्थितिक लागत को नजरअंदाज किया गया है।

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