कविता :  सब ठीक है कहना चाहिए

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

 “सब ठीक है”, उम्रदराजी के एहसास

के साथ भी, बालों में सफ़ेदी के बाद

भी, जीवन का आनन्द लेना चाहिये,

इसलिए सब ठीक है कहना चाहिए।

               दाँत हिलने लगें, घुटने दर्द करने लगें,

              सीढ़ियाँ ना चढ़ सकें, तो भी दिल को

       ख़ुश रखना चाहिए, मैं मज़े में हूँ,

          और सब ठीक है कहना चाहिए ।

जिगरी दोस्त जब फोन पर हाल

पूछें कि कैसे हो ? हँसकर कहना

चाहिए कि मैं तो बड़े मजे में हूँ,

और सब ठीक है कहना चाहिये।

नज़रें कमजोर हुईं, अनुभव सब

दिखाता है, पर कम दिखता है,

लिखता हूँ, पर क्या लिखूँ, इस

 लिये सब ठीक है कहना चाहिए।

आसमान धुँधला हो, आँखों में

झिलमिल सा बादल हो, जल्दी

जल्दी भूलने की आदत हो, फिर

भी सब ठीक है कहना चाहिए ।

अस्पताल जाता हूँ डॉक्टर को

     तो बताता हूँ, पर कोई और कुछ

पूछे कि तबियत कैसी है? तो

सब ठीक है ही कहना चाहिए।

कानों से कम सुनता हूँ, कभी बीस

को तीस भी सुनता हूँ, बहुत से काम

भी तो अनुमान से ही कर लेता हूँ,

इसलिए सब ठीक है कहना चाहिए।

सफर लम्बा था, अब और इंतज़ार

किसका, पर प्यास अभी बाकी है,

दौड़ सकता नहीं, यादों में दौड़ता हूँ,

इसलिए सब ठीक है कहना चाहिए।

 

बूढ़ापा सच में आ चुका है, पर दिल

है कि मानता नहीं, शरीर थक चुका

है पर शरारत तो अब भी जारी है,

इसलिए सब ठीक है कहना चाहिए।

यह सत्य है कि हम आप सभी उम्र

दराज होंगे, दिल दिमाग़ माने न माने

पर जितनी जल्दी महसूस कर लें,तब

आदित्य सब ठीक है कहना चाहिए।

 

 

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