कविता की रचना जब कोई कवि
अपनी कल्पना में जाकर करता है,
यदि पाठक रचना में गलती खोजे,
समालोचना उसका हक़ होता है।
बिना गलती के गलती खोजे यह,
बिगड़ी आदत के कारण होता है,
लेकिन ख़ुद जब वह लिखना चाहे,
एक पंक्ति पूरी नहीं लिख पाता है।
निंदा और समालोचना, सोचने
और समझने के दो पहलू होते हैं,
पहला नकारात्मक पहलू होता है,
दूसरा सकारात्मक पहलू होता है।
नकारात्मकता पाठक को स्वयं
कवि, लेखक नहीं बनाने देती है,
सकारात्मक सोच की समालोचना
पाठक को लिखना सिखला देती है।
पाठक भी ऐसे ही कवि व लेखक
बन कर अपनी रचनायें दे पाते हैं,
आदित्य व्यर्थ ग़लतियाँ जो नहीं
खोजे वह रचनात्मक बन जाते हैं।