
सर्दी के मौसम में माता-पिता को उस वक्त सावधान हो जाना चाहिए जब बच्चों की नाक बहने लगे। गले के दर्द के साथ-साथ बंद नाक, सांस लेने में परेशानी, नींद में कमी, भूख में कमी, ठीक से व्यवहार न करना जैसे लक्षणों पर सतर्क हो जाने का यही सही समय है। अगर बच्चे में हार्ट या लंग से संबंधित कोई बीमारी है तो ऐसी परिस्थिति में शिशु ज्यादा परेशानी में पड़ सकता है इसलिए उसका अस्पताल में ही इलाज करवाना आवश्यक होता है। इस तरह की बीमारी वायरल होती है इसलिए डॉक्टर की निगरानी में बच्चे को धीरे-धीरे ही आराम मिलता है।
सर्दियों में सांस संबंधित होने वाली और भी कई बीमारियां हैं जैसे कि इंफ्लूएंजा। इंफ्लूएंजा को सामान्य रूप से फ्लू कहा जाता है, जो एक वायरल संक्रमण है जो सांस से संबंधित प्रणाली- नाक, गला व फेफड़ों पर हमला करता है। इंफ्लूएंजा सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है, लेकिन बच्चों तथा जिनकी रोग-प्रतिरोधक प्रणाली किसी बीमारी या दवाई से कमजोर है, उनके लिए यह भयानक रूप धारण कर सकता है। जब कोई खांसता, छींकता या बात करता है तब फ्लू के वायरस बूंदों के रूप में हवा में सफर करते हैं। इन बूंदों को कोई सीधे ही सांस में या कोई वस्तु- जैसे कि टेलीफोन या कंप्यूटर की बोर्ड पर से आंखों, नाक या मुंह से उन्हें ट्रांसफर कर सकता है। जिससे वे संभवित रूप से संक्रमित हो जाते हैं।
इसके सामान्य लक्षणों में शामिल हैं – मांसपेशियां शरीर में दर्द, ठंड लगना, थकान और तेज बुखार जो अचानक शुरू हो जाता है। 6 महीने से 2 साल तक के बच्चों के लिए इंफ्लूएंजा का टीका बाजार में उपलब्ध है। अपने शिशु का टीकाकरण जरूर कराए। इंफ्लूएंजा वायरस के कारण होता है। इसके लक्षण हैं- थकान, बुखार और सांस लेने में तकलीफ। इंफ्लूएंजा की गंभीर स्थितियों में निमोनिया भी हो सकता है।
हफ्तों तक परेशान करती है खांसी
5 साल से कम उम्र के बच्चों को ब्रोंकाइटिस की समस्या अधिक होती है। वैसे यह समस्या हर उम्र के लोगों में देखी गई है। ऐसे में मरीज को सांस लेने में तकलीफ के साथ खांसी भी होती है, जो कई हफ्तों तक रहती है। बच्चों में ब्रोंकाइटिस के कारण बुखार भी हो जाता है। जटिलता अधिक होने पर एक्यूट ब्रोंकाइटिस से निमोनिया, फेफड़े के टिश्यूज का नुकसान होना तथा श्वास लेने की क्षमता में निरंतर गिरावट होना शामिल है। यदि बच्चा कुछ समय से परेशान करने वाली खांसी तथा सीने की असुविधा महसूस कर रहा है तो उसे ब्रोंकाइटिस की संभावना है। एक्यूट ब्रोंकाइटिस के लक्षणों में कफ, गले में खराश, बुखार, नाक में बाधा शामिल है।
दमा या अस्थमा
ठंडी हवाएं दमा के लक्षणों को गंभीर बना सकती हैं, जैसे सांस लेने में बहुत तकलीफ होना। बदलती जीवनशैली के कारण अब 2-3 वर्ष के बच्चों भी अस्थमा की चपेट में आ रहे हैं। इसका प्रमुख कारण बच्चों को स्तनपान न करवाना और दूषित आबोहवा है। इसलिए खासकर महानगरों के बच्चों में अस्थमा तेजी से फैल रहा है।
एंटीबायोटिक के अधिक उपयोग से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वह अस्थमा सहित कई दूसरी बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं।
रेस्पायरेटरी सिनसायशियल वायरस के कारण बच्चों को सरदर्द, बुखार के साथ सांस लेने में तकलीफ होती है। आरएसवी सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है। लेकिन बुजुर्गों और नवजात शिशुओं के लिए यह समस्या अधिक गंभीर होती है। बच्चों में सांस लेने में तकलीफ के साथ खांसी भी हो सकती है। ऐसी स्थिति नवजात शिशु के लिए निमोनिया (ब्रांकिसोलाइटिस) का कारण भी बन सकती है।
न्यूमोनिया को हल्के में न लें
फेफड़ों में होने वाले संक्रमण को न्यूमोनिया कहते हैं। बच्चे और बूढ़े इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। बच्चों में न्यूमोनिया एक घातक बीमारी है। जिससे देश में हर साल करीब 21 लाख बच्चे मौत के शिकार हो जाते हैं। बच्चों में न्यूमोनिया की शुरुआत हल्के सर्दी-जुकाम से होता है। जो धीरे-धीरे न्यूमोनिया में बदल जाता है।