असल जिंदगी में नही मिल पा रहा दिव्यांगों को योजना का लाभ

- अपना हक मांगने के लिए लगाना पड़ता है सालों अधिकारियों के दरवाजों में चक्कर
- एक ऐसी महिला जो जानवरों की तरह चलने को मजबूर है
बांदा। दांतों में पानी की भरी बाल्टी और पीठ पर बच्चे को लेकर जा रही महिला कोई सर्कस का खेल नही दिखा रही है। आज अगर यह महिला ऐसा जीवन जीने के लिए मजबूर है। तो इसके पीछे बुंदेलखंड के पिछड़े क्षेत्रों में फैली अशिक्षा है। आज हम केवल इस एक महिला के बारे में नही बल्कि तमाम उन दिव्यांगों के बारे में बात कर रहे हैं। जो समाज में फैली अशिक्षा गरीबी और लापरवाही के चलते इन्हें पूरी जिंदगी बेबसी और लाचारी के साथ बितानी पड़ती है। वहीं दूसरी तरफ अगर इन दिव्यांगों के लिए चलाई जाने वाली सरकारी योजनाओं की बात करें तो कहीं न कहीं ये योजनाएं इनकी लाचारी और बेबसी को चिढ़ाती हुई नजर आती हैं। क्योकि सोचने वाली बात है कि वर्तमान की महंगाई में इन दिव्यांगों के लिए सरकार से विकलांग पेंसन के नाम पर केवल 500 रुपये महीने ही मिलता है। अब आप ही बताइए क्या कोई 500 रुपये में अपने महीने का खर्च चला सकता है। अगर नही तो शायद सरकार को भी इन दिव्यांगों के विषय और सोचना चाहिए।
अब हम बात करते हैं विसंडा विकास खण्ड के पुनाहुर गांव की एक महिला जो जानवरों की तरह चलने को मजबूर है। हम इसी महिला के विषय बता रहे जो कि बचपन से ही विकलांग है। लेकिन उसके बाद भी इस महिला ने अपने हौसले को बरकरार रखते हुए हर उस काम को पूरा किया जो एक सकलांग व्यक्ति कर सकता है। वीडियो में दिख रही ये महिला नरैनी तहसील के फतेगंज क्षेत्र में जन्मी रामा देवी है। जिनकी शादी बिसंडा क्षेत्र के पुनाहुर गांव में रहने वाले विनोद यादव के साथ 2012 मे हुई थी। जानकारी देते हुए रामा देवी ने बताया कि जब मेरा जन्म हुआ था तो मैं बिल्कुल स्वस्थ थी।
लेकिन बचपन में अचानक मुझे तेज बुखार आया और मेरे परिजनों के द्वारा वहीं के डॉक्टर को दिखाया गया। गांव के उस डॉक्टर की लापरवाही की वजह से मेरा पूरा जीवन अभिशाप बन कर रह गया है। लेकिन उसके बाद भी मैंने हार नहीं मानी और अपने जीवन के दैनिक कार्यों को स्वयं करने का प्रयास किया। सुरुआति दौर में कुछ परेशानियां हुई लेकिन बाद में आदत पड़ गयी जिससे अब कोई समस्या नही होती है। लेकिन हमें सरकार की किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। मैं शत प्रतिशत विकलांग हूँ मेरा प्रमाण पत्र भी बना हुआ है। योजना के नाम पर केवल विकलांग पेंसन ही है वो भी 500 रुपये महीना । अब आप ही बताइए क्या कोई 500 रुपये में अपना परिवार चला सकता है।
एक रामा देवी ही नहीं बल्कि अगर हम पूरे जनपद की बात करें तो वर्तमान में लगभग 55 हजार दिव्यांग हैं । लेकिन अगर उन तक पहुँची सरकारी योजनाओं की बात करे तो केवल न के बराबर। कहीं न कहीं इन दिव्यांगों की लाचारी का फायदा सरकारी तंत्र के लोगों की मिली भगत से भी उठाया जाता है। क्योकि जब इन दिव्यांगों के लिए कोई सरकारी योजना आती है तो उन तक नहीं पहुच पाती है और अगर कभी योजना की जानकारी हो भी जाती है तो वह भ्रटाचार की भेंट चढ़ जाती है।
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